Sunday, November 7, 2010

ममता

ममता 
परिदृश्य :-
अस्पताल के चौराहे पे  लोगों की भीड़ लगी थी
दुर्घटना से एक महिला की लाश रक्तरंजित पड़ी थी
आगमन :-
भीड़ को फाड़ता , चीखता , चिंघाड़ता
१५ वर्ष का राजू माँ को देख रो पड़ा
याचना :-
मेरी माँ एक आखिरी सहारा साब! मेरा बाप नहीं है
बचा लो   मेरी माँ को   साब!   कोई मेरे साथ नहीं है
गाड़ी में माँ अचेत पड़ी थी ,  मेरे लिए संकट की घड़ी थी
मौत मेरे सामने खड़ी थी, गाड़ी जब रुकी  माँ चल पड़ी थी
मुझे लगा माँ मुझे आँखों से देख रही है
कैसे जियेगा मेरा लाल ,  यही  सोच रही है
माँ का त्याग :- 
नहीं  माँ तो सोई है , कई दिनों तक माँ मेरे लिए रोई है
मत जगाओ इसे   साब !  कई  रातों   से   माँ   नहीं   सोई है
मेरी नजर हाथों पे ज्यों पड़ी , आँखें खुली की खुली रही
माँ तो चल पड़ी पर  मेरी दवा उसकी मुठ्ठी में बंधी रही
परसों ही तो   उसने   मुझे   अपना   खून   दिया था
दो दिन से माँ ने कुछ खाया पिया भी नहीं था
दादी ने कहा था     मैं   तो अँधा पैदा हुआ था
किसी तरह माँ ने मुझे नया जीवन दिया था
माँ ने   मेरे   लिए   क्या -२   कुछ   नहीं किया था
बचपन में आँख दी दो दिन पहले खून दिया था
नहीं माँ मर नहीं सकती है , माँ अजर अमर शक्ति है
माँ जब जीवन दे सकती है  तो माँ कैसे मर सकती है
माँ तो जाँ  है , माँ   तो जहाँ  है
माँ   के   बिना   ,  जन्नत   कहाँ   है  

प्रेमराग

प्रेमराग
क्यों यहाँ छुपे हो प्रभु बांके बिहारी
त्राहि त्राहि कर रही है दुनियां  सारी
काया-माया में फंसे हैं सब नर-नारी
कब लोगे तुम सुध हमारी हे गिरधारी!
दिव्य प्रेमलीला का तुमने ही रास रचाया
आज का मनवा देखो प्रेमलीला से घबराया
तुमने ही  प्रेमजोत  हम सबके दिल में जलाई
जात-धर्म, उंच नीच में फंसी ये दुनियाँ सारी

कब लोगे तुम सुध हमारी हे गिरधारी!
कहीं राधा बेटी   देखो   आत्महत्या   करने   को   मजबूर
कहीं कृष्ण बेटा देखो अपनी जान बचाने को  मजबूर
तुम्हारे प्रेम को तो दुनियाँ देखो मन से लगाए
वही प्रेम कोई और करे , क्यों सब को पढ़े भारी
कब लोगे तुम सुध हमारी हे गिरधारी!
प्रभु सबके दिलों में फिर दिव्य प्रेमजोत जलाओ
अपनी दिव्य प्रेम रासलीला आज सबको दिखाओ
ताकि राधा फिर न मरे, कृष्ण फिर कहीं न भागे
उंच-नीच, जात-धर्म मिटाओ की बस प्रेम पढ़े भारी
कब लोगे तुम सुध हमारी हे गिरधारी!
कब लोगे तुम सुध हमारी हे राधाकृष्ण मुरारी!

" माँ "

" माँ "
फरिश्तों की चाह रखने वालें बस नजर घुमा के तो देख
कौन है तेरे दिल के सबसे पास दिल में झाँक के तो देख
यूं तो दिए हैं खुदा ने हजारों रिश्तें दुनियां में
किया  जिसने  रिश्तों  का  सिलसिला  मुकम्मल
उसके  दिल की   गहराइयों में जा  के तो देख 
कर दिया न्यौछावर जिसने ममता से अपने दिल का हर टुकड़ा
उसे अपने दिल के किसी कोने में बसा के तो देख
"माँ"    सिर्फ  एक शब्द   नहीं , एक गर्व है
एक प्यार   का   सागर है ,  सतत प्रेरणा है
खुदा भी तुझसे कहता है कि  शायद तू है सबसे खुशनसीब
क्योंकि   इसी   फरिश्तें   के   लिए     मैं   तो   आज  तक  हूँ गरीब

अमन ए जेहाद

अमन ए जेहाद
धरती पर इस्लाम का मुशर्रफ़ क्या है काम
इस्लाम मिशन तेरा मंगल पर आएगा काम
अभी फूल खिला नहीं , तू उससे जा मिला
जेहाद का जाम तूने , उसे दिया   पिला
बना दिया उसे आतंकवादी  , जो है बुरे काम का आदी
अमन में खलल डालेगा , कहेगा सब अल्लाह की मर्जी
ओसामा! सामान लाद , तालिबान भी ले जा संग
धार्मिक उन्माद तेरा, बस मंगल पर लाएगा रंग
इंसानियत कुदरत का धर्म, सबकी एक ही धरती,एक ही सूरज-चंदा
कुदरत के सब एक से बन्दे, तू क्यों नहीं बनता नेक बन्दा
मंगल पर जब धरती के सारे धार्मिक जेहादी जाएगें
अपनी शापित धरती से फिर हर कष्ट दूर हो जायेंगे
फिर धरती पर केवल एक ही धर्म रहेगा
मानवता का मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा बनेगा
फिर मंगल पर जब धार्मिक दंगल चलेगा
किसी रोज धूमकेतु मंगल को मंगल करेगा
हो   जाएगा   ब्रह्माण्ड   से   सब   दुष्टों   का नाश
सारे ब्रह्माण्ड पर हो जाएगा मानवता का राज

Saturday, November 6, 2010

बंद आँखों का रहस्य

बंद आँखों से  देखोगे , तो सब कुछ  दिखाई देगा
अनंत गोचर में अलख त्रिकालदर्शी दिखाई देगा

कौन कहता कि  बंद आँखों से कुछ दिखाई नहीं देता
वो देखता है सबको पर खुद सबको दिखाई नहीं देता

मन कि आँखों से जब हम अनंत सैर को चलते हैं
पूरे ब्रह्माण्ड में चाँद सूरज तारें सब तैरते दिखते हैं

मन बेकाबू होकर जब सूरज के पार निकल जाता है
एकाग्र वेग से मन ब्रह्माण्ड के स्वर्ग पे उतर आता है

मनोयंत्र से जब मैं  सूरज के  अन्दर तक गया
क्या छटा थी! लगा कि मैं सागर मैं उतर गया

पलभर में मैं  आगे बढ़ा चारों तरफ  क्या हरियाली थी!
सोने चाँदी की राहों में  बस ख़ामोशी ही खुशियाली थी

ज्योंही आगे बढ़ा सामने तारों का स्वर्नमहल था
रत्नों  से जगमगाता  कितना  अनोखा  शहर  था !

पंचतत्वों ने क्या सुंदर छटा बिखेर रखी थी
अलख शक्ति ने क्या दुनिया उकेर रखी  थी !

हवा में लहराता  मैं  जलपरियों संग  गुनगुनाता गया
ओउम नमः शिवाय  जपते-जपते मैं आगे जाता गया

सामने क्या आलौकिक विशाल प्रकाश पुंज था
अथाह प्रकाश में ही    शिव ॐ   का निकुंज  था

जीवन प्रकाश की करुण वंदना  कर रहे थे असंख्य सूरज
करके  दर्शन  अलख  शक्ति का  मेरे मन को मिला धीरज

बंद आँखों के   मनोवेग से   जो  अनंत  को गया
जिनको हो गए दर्शन  उन्हें तो मोक्ष मिल गया



HEART -- THE UNIQUE WORLD

“Heart” - the Unique World


O dear  ! come near , This is heart  don’t fear

Please  break   it   Never

Keep remember Forever

My dear come near………

 It  has  no  Religion  ,  nor  has  any  Region

Respect  all , Conquer  all

Be characterstic,don’t fall

My dear come near………

 Never fear with sorrow , be cheer make fellow

Never  say  ,  Harsh   word

Dispurse Love in the world

My dear come near………

Heart is Glass , Look inner

Heart is Ocean , go deeper

Keep   smile  ,   Don’t  shy

Heart is Sky , you may fly

My dear  come near………

 Never loose heart dear , ever take heart dear

Always  deal  ,  Fair  deal

look  Real  ,  Be  an Ideal

My dear come near………

                                                                           Created by  nqyhpUn mQZ veu

शक्ति का आक्रोश

कहीं क्षत्रिय महासंघ  तो   कहीं   ब्राहमण परिसंघ
कहीं वैश्य परिसंघ   तो  कहीं अनुसूचित महासंघ

धर्म-जाति भाषा के नाम पे  क्यों  हो  रही   है जंग?
भारत की पावन देवभूमि पे किसने लगाया कलंक

यह देख के मेरा  कोमल  हृदय  हो  गया  है दंग
कैसे हो  पावन इस धरती का हर कोना हर अंग

माना कि प्यारों तुमने  खुद ही खुद  को वर्गों में बांटा है
हिन्दू मुस्लिम  बनके तुमने बस अपनों को ही काटा है

अब  लहूलुहान  हो  गयी है  प्यारों!  यह  पावन धरा
किस किसको समझाऊ समझाना मुशिकल है बड़ा

हर किसी को चाहिए   ठगनी  माया की  भव्यता
रक्तरंजित है मानवता कहाँ है गृहस्थ में दिव्यता

अब वक्त नहीं  है बचा   सबको सुधरने को कहूँ
क्यों न इस मलिन क्रीडा का अंत मैं शीघ्र करूँ

क्यों न अपनी  विप्लव ज्वाला से ऐसी आग लगाऊं
सारी मानव जाति को मिटाकर नयी दुनियां बसाऊं







नई दुनियाँ

अलख परमशक्ति ने जब पंचतत्वों में हम सबको  है ढाला
आदम ने फिर क्यों खुद को  यूं देश-जात , धर्म में है पाला
दुनियाँ में मानव बस   मोह -  माया के  चक्कर  में पड़ा है
कोई जात के लिए , कोई धर्म के लिए , कोई पद पे अड़ा है

आज  आदमी  हैवानियत की  हर हद को  पार  किये  जा रहा है
कुदरत के नियमों को तोड़ कर  जहाँ से दुश्मनी लिए जा रहा है
इसलिए दुनियाँ में  हर तरफ हिंसां का शोर है
त्राहि-त्राहि कर रही  देखो दुनियाँ चारों ओर है

क्या कोई  मौला-पंडित  आज बस  इतना  बता सकता है?
हिन्दू  हिन्दू ही पैदा होगा  मुस्लिम  मुस्लिम पैदा होगा
नर   नर  ही  पैदा होगा  और  नारी   नारी  ही   पैदा  होगी
क्या कोई मौला पंडित शास्त्री साबित कर दिखा सकता है?

क्षण भर जीवन जीकर भी, फूल अपनी खुशबू से महकता है चमन
जात-धर्म का अहम् त्यागकर क्यों मानव  नहीं अपनाता है अमन
हे वाहेगुरुपरम्पिता अल्लाहईसा! इस  मैली  दुनियाँ  को  मिटा दो
बस इंसानियत के फूल खिलाकर,फिर एक नई दुनियाँ को बना दो

नई दुनियाँ में फिर न हो देश ,जात-धर्म का बोलबाला
इंसानियत के दिव्य प्रकाश से हो सारे विश्व में उजाला

" मैं कौन हूँ? "

" मैं  कौन  हूँ? " 

"मैं  कौन  हूँ " यहाँ  बस यही  जानना  है
खुदी को मिटाकर खुदको पहचानना है
जीने का फलसफा बस प्यार है जहाँ में
निश्छल  प्रेम ही   कुदरत का खजाना है

लोग यूं ही क्यों  ,  मजहब के लिए लड़ते हैं ?
हैवान बनके क्यों इंसानियत का खून करते हैं
जबकि सबकुछ तो है जहाँ में सबके लिए
बस  दो   गज  जमीं  ,जहाँ  में हैं  सबके   लिए

पैगाम दे दो  जहाँ में , ऐ जमीं  के खुदाओं  , संभल जाओ
जलजला आने से पहले  नसीहत   सब इन्सान बन  जाओ
मुझे  ये  जहाँ  हिन्दू  माने  या  मुस्लमान  माने
"मैं  कौन  हूँ " हर प्राणी  बस  खुद को  पहचाने

मैं  तो  यहाँ  सिख - इसाई   बन के  भी  जिया
बुध-जैन  का चोला  भी  मैंने यहाँ पहन  लिया
अब   तुम   खुद   ही   पहचान लो     "मैं  कौन  हूँ "
तुम मेरा मकसद  हो पहचान लो "मैं  कौन  हूँ "


श्रद्धा



भारत की महानता को  जग सारा है जानता
अध्यात्म चिंतन मनन को जग है बखानता

श्राद्ध में श्रद्धा ,पेड़,सूरज,चाँद,तारों में है श्रद्धा
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारों में है श्रद्धा
पत्थर में भगवान,कब्र में पीरानी हुकूमत को मानता
भारत की महानता को तो जग सारा है जानता

श्रद्धा का अभाव  भले  मानव में मानव के प्रति हो
परमात्मा में श्राद्ध मानव के ह्रदय रसातल तक है
पत्थर में हर सूरतेहाल  विधाता को है निहारता
भारत की महानता को तो जग सारा है जानता

रीति-रस्म-रिवाजों के  मकड़जाल में फंसा मानव
है श्रद्धा से भरपूर,पर है क्यों इंसानियत से बड़ी दूर
जग भी नहीं रहा अछूता  जग में है धर्मान्धता
भारत की महानता को तो जग सारा है जानता

भारत की महानता को  जग सारा है जानता
अध्यात्म चिंतन मनन को जग है बखानता

परिवर्तन

परिवर्तन
भक्ति में जो शक्ति है बस परिवर्तन की माया है
जिसने बदला खुद को प्रकृति अनुकूल वो जग में छाया है
प्रकृति की आत्मा  बस परिवर्तन है  यारों
सृष्टि में चंहु ओर  बस  परिवर्तन  है  यारों
दिन-रात का क्रम  परिवर्तन  नहीं तो क्या है
मानव निर्मित सबकुछ  परिवर्तन का फलसफा है
सृष्टि में भी वही रहेगा युगांतर यारों अमर
मानवता के लिए जिए जो यारों चारों पहर
जिसने खुद को नहीं बदला , इस चराचर  से गया निकल
मिट गया उसका नामोंनिशा , जीवन उसका गया विफल
इस परिवर्तन के युग में , कब क्या बदलाव  आ जाये
खुदको बदलो इतना कि , ये जीवन सफल हो  जाये
बदलो खुद को ऐसे कि , बदल जाये समाज
बदल जाये संसार ,  बदल  जाये  कल  आज
धरती पर न रहे  कहीं , जात धरम रंग  भेद
बस हो मानवता की खेती , विधाता भी करें नाज

चमत्कार पर अविष्कार

चमत्कार पर अविष्कार
कलयुग के मानव कि कल्पना तो भगवन से परे है
सैंकड़ों बरसों में इन्सान ने कितने अविष्कार करे है
माना कि भगवान के पास तो जादुई  शक्ति है
इन्सान के पास भी कर्म की वैज्ञानिक भक्ति है
माना की भगवान आप इंसान के भाग्यविधाता हैं
पर इस मशीनी युग का तो इंसान ही निर्माता हैं
देखो पञ्च तत्वों को उसने कैसे अलग थलग किया है
पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश अपने कब्जे में किया है
अग्नि को माचिस तीली में , वायु से आकाश को छुआ है
जल को नलकूपों में , पृथ्वी के भूगर्भ पर कब्ज़ा किया है
अगर मानव विकारों के चंगुल से बस खुद को बचाले
फिर स्वर्ग क्या वो जब जो कुछ , चाहे  पल में पा ले
जो आया है जग में जग से , इक दिन जायेगा जरूर
कर्म आधार जीवन ही फिर से , मानव पायेगा जरूर
बस आत्मा का रहस्य  , अगर जान जाये  यह  मानव
भगवान बनने का जूनून , उसका  बन जायेगा गुरूर

सतगुरु

सतगुरु
गुरु वही जो सर्वश्रेष्ठ है शाश्त्रार्थ में
धर्मगुरु जो मग्न है धर्म प्रसारार्थ में
कलयुग में चहुँ ओर लगा है धर्मगुरुओं का पंडाल
सुरक्षा शांति महफूज  मगर बाज नहीं आते चंडाल
बेबस मानव सुख शांति के लिए आता गुरु शरण
सुख शांति पाने के लिए गीता कुरान में है मगन
ईश्वरीय साक्षातकार का दिव्य स्वप्न दिखाते है सब धर्मगुरु
ईश्वरीय   व्यक्तिवाद    की   पूजा    बस    सिखाते   है    सब धर्मगुरु
क्यों मोह,  माया,  मद,  विकार से    वो खुद को   बचा नहीं पाते
खुद को सर्वश्रेष्ठ कहलाने की होड़ में खुद को झुका नहीं पाते
सबकुछ   निहारे ईश्वर ,   सब पर करे रहम
समदर्शी ब्रह्मा विष्णु महेश कहता शिवोहम

मौत की शहादत


जिन्दादिली  से , जीना यारों इबादत  है
कैसे किसकी जिन्दगी ,यारों शहादत है
जिन्दगी  जीने का  बस  यही  मौका  है
मौत तो यारों बस इक हवा का झौंका है

जिसने  भी  मैं  को  नज़दीक  से देखा है
हकीकत है उसने मौत को करीब देखा है
मौत को यारों  अब तक  किसने रोका है?

मौत तो यारों  बस इक हवा का झौंका है

इस अंजुमन से  इक दिन  सबको जाना है
मौत की मंजिल ही बस सबका ठिकाना है
जीवन का रहस्य  मौत  इक  पहेली है
मौत ही जिन्दगी की सच्ची सहेली है

जिए  जो औरों को  भी सही जीना सिखा दे
मौत को जो इंसानियत का कफ़न पहना दे
मौत  की  मजाल   क्या  जो  उसे  मिटा  दे
उसी की मौत जिन्दगी को शहादत बना दे
  

माँ की ममता

माँ की ममता

माँ क्या होती है,माँ तो माँ होती है
माँ  जाँ होती  है , माँ  जहाँ होती है
माँ ईश्वरीय शक्ति है माँ ईश्वरीय भक्ति है
जिससे पञ्च तत्वों का संचार होता है
जो केवल  जीवन का  आधार  होती है

माँ है मंदिर,माँ है मस्जिद,माँ गिरजा गुरुद्वारा है
माँ  का  आँचल   ही   तो   यारों ,  स्वर्ग   हमारा है
जिन्दगी भर  बच्चों की खातिर   जीवन अपना ढोती  है
बच्चों  की  खुशियों  में तो  माँ  भी  खुश  होकर  रोती है

माँ का आँचल कितना विशाल ! कितना वत्सल
सब देश धर्म के लोग   आँचल के तले रहते है
बांटा  है  क्यों  हमने  आँचल  को  देश धर्म में
आँचल सबका  है क्यों आँचल के लिए लड़ते है?

यह देख के माँ रोती है , उसकी आँखों से गंगा बहती है
हम सबके पापों को माँ , अपने   आंसुओं   से  धोती  है
आँचल  के तले  जो प्यार से  रहेगा
उसके वजूद सदा आँचल में पलेगा

माँ के कितने ही रूप हैं  पर उसका एक ही स्वरूप है
ममता जिसका आँचल है    तो आँखें शक्ति स्वरुप है
माँ देश धर्म रंग रूप से नहीं , माँ तो बस माँ होती है
माँ जाँ होती है , माँ जहाँ होती है, माँ बस माँ होती है

माँ वो मन्त्र है , वो तंत्र है , सबके लिए  वो सर्वत्र है
जिसके जपने से मिले मोक्ष,जीवन सफल सर्वत्र है






सीख

सीख

सीखने को क्या कुछ नहीं है दोस्तों संसार में
सब कुछ मिलेगा दोस्तों देश-प्रेम ,परिवार में

है अगन लगन  सीख की तो  सीख सकते हो
इनसे सीखकर  जहाँ का दिल जीत सकते हो

सीख लो...
फूलों की महक से , चिडिओं की चहक से
कनक की चमक से , पायल की झनक से

सीख लो...
माँ  के  मातृत्व  से , पिता  के  पितृत्व  से
सावित्री के सतीत्व से,लक्ष्मण के भ्रातृत्व से

सीख लो...
ऋषिओं के वचन से , मीरा  के  भजन से
पेट की अगन से , अध्यात्म के मनन से

सीख लो...
एकलव्य की दीक्षा से , राजा बलि की भिक्षा से
अर्जुन के लक्ष्य से , श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से

सीख लो...
गुरु की महिमा से ,गंगा की गरिमा से
समय की चाल से , काल के अकाल से

सीखना ही है दोस्तों तो , सीखों हर किसी से
सीखो मगर वही  जो काम आये हर किसी के



कलयुग का महापंडित

कलयुग का महापंडित

रावण क्यों महान था ? रावण  क्यों  महान  है?
कलयुग में है सर्वश्रेष्ठ , दुनियां क्यों अन्जान है

कोई भी किसी बहन के साथ  जब लखन सा  व्यव्हार करेगा
भाई बहन के पवित्र बंधन का, कोई भाई कैसे परिहास सहेगा

मर्यादा रघुकुल की खंडित कर,  लक्ष्मण ने सुपर्न्खा   की कटी नाक
नारी सरंक्षण मर्यादा तोड़कर, लक्ष्मण ने रघुकुल रीति रखी यूं ताक

माता सीता को हर कर भी , रावण ने  मर्यादा कहाँ लांघी ?
दुराचारी कहलाकर भी रावण सद्चरित्र का सदा रहा भागी

क्या आज का मानव मर्यादा की  परिभाषा को जानता है ?
धन ऐश्वर्य पाने के लिए,मर्यादा की हर सीमा को लांघता है

जब सतयुग में है राम आदर्श तो कलयुग में है रावण प्रणेता
काम क्रोधी मद लोभी प्राणी ,  रावण से सीख क्यों नहीं लेता


 

 

सोना

सोना
सोना  ! इंसान   के  लिए   कितना   है  जरूरी
जिसको  मिल जाये समझे कमी हो गयी पूरी
सोना  अधिक  पाना ,हर तरह से है  बेकार
एक पाए बोराय नर ,  हो   दूजे  से   बीमार
इंसान चाहे  मंदिर-मस्जिद   गिरजे - गुरद्वारे गढ़ना
सोने   में   मढ़   भगवान से  , बस मोक्ष प्राप्त   करना
भगवान  कहते हैं  हे प्राणी ! ले सोना  या  बन  सोना 
ये सब तुझ पर निर्भर  है,अब जाग जा मत तू सो ना
सोना चाँदी  हीरें मोती   तू पन्ना   लाल  ले  ले
बिन सोने  के बन  सोना   ये  आत्मज्ञान  ले ले

हैवानियत



धरती बांटी , अम्बर बांटा , बाँट दिया भगवान को
जात धर्म का जहर फैलाकर , बाँट दिया इंसान को

देख ले   साधुओं की  असाधु  प्रवृति
देख ले मौलाओं की  हैवानियत दृष्टि
देख ले धर्म ने  इन्सान को  किस कदर बांटा है
देख ले इंसान ने इंसान को किस कदर काटा है

कहीं ओसामा-ईराने-इराक,कहीं भाषा जल का विवाद
ताजा तरीन है आज भी  गुजरात का  वो  खूने फिराक
बना के बम आदमी  खुद बना है बम
जल रहा है चमन,खतरा बना है धर्म

जब मिट जायेंगे  यूं   ही  जहाँ  के  सब  मंजर
फिर किस पे चलाएगा  तू  अपना  खूने खंजर
इंसानियत का खून   सरेआम    हो रहा है
हैवानियत के  जुल्म से  इंसान  रो रहा है

या तो ला दे सैलाब  और  मिटा दे हैवानियत
नहीं तो सदियाँ लगेगी मिटने में शैतानियत
क्यों छाया है जहाँ में       नशा ए हुकूमत?
कब जागेगी तेरे करम से इंसानी हुकूमत?

महिमा



प्रभु!   मैं  कभी - कभी  इतना  बैचेन  हो  जाता  हूँ
तुझसे बराबरी करने का गुनहगार खुद को पाता हूँ

कभी खुद को कोसता हूँ ,कभी इतना अधिक सोचता हूँ
आपकी महिमा इतनी अपरम्पार कैसे है?
प्रबुद्धजन कहते हैं  कि आप हमारे जैसे हैं

आप कैसे इतने-इतना चमत्कार कर लेते हो?
कैसे  दुनियाँ के दुखों में  साक्षात्कार रहते हो?

जबकि अरबी अरबी  में फरमाता है  और  अंग्रेज अंग्रेजी  में गाता है
भारत में ही कितनी भाषा है हर भारती अपना दुखड़ा तुमसे गाता है
कैसे सबकी अर्ज आपकी समझ में आता है?
यही  सोचना  अक्सर  मुझको  भरमाता है

दुनियाँ  में  नित  सब  अपनी  भाषा  में  आपसे  फरमाते  है
आप अल्लाह-ईसा-नानक-गौतम बन सबकी समझ जाते है

प्रभु!  अपनी बनाई  महिमा तो  मैंने कई  देखी है
लेकिन आपकी महिमा साक्षात् मैंने नहीं देखी है
प्रभु ! मुझे  अपनी  महिमा  साक्षात् दिखलाओ
मैं अज्ञानी बालक मुझको साफ साफ बतलाओ

दुनियाँ में आपने इतने भाषा धर्म क्यों बनाये?
देख तेरी दुनियाँ अब देश धर्म पे मिटती जाये
इंसान  जब  बनाये  तो  इंसानियत  क्यों  नहीं  बनाई
क्यों हो रही है जहाँ में शैतानियत की हौसलाअफजाई

प्रभु! देख  तेरे गगन से  धुआं उठ रहा है
शायद इंसानियत का चमन जल रहा है
क्या  यही  है  आपकी  महिमा , हर  शख्स  क्यों  है  सहमा
ले  अभी इन्हें सँभाल नहीं तो दुनियाँ है दो दिन की महमाँ

जब  सब  भाषा  आपको  समझ  आती  है
तो   मेरी   आपको   क्यों    नहीं    भाती है
प्रभु! मेरी अर्ज सुनो , सबको सामान करो
नहीं  तो  मैं  आपके  सारे  राज खोल दूंगा
हो सका तो आपके पीछे जासूस छोड़ दूंगा

आपको याद हो अब मैं भी स्वर्ग में sattelite लगा सकता हूँ
आपके दरबार में क्या क्या होता है    सबको दिखा सकता हूँ

यदि  नहीं तो प्रभु !  शीघ्र  मेरी अर्ज सुनो
इंसानियत ईजाद कर धरा को पवन करो

समय

मैं समय हूँ   ,  मैं समय हूँ
हरेक के साथ हर समय हूँ
मेरा जीवन है आदी अंत
और आदी अंत है अनंत

हो तुम कौन? किस  देश धर्म के?  यहाँ  किसलिए  आये?
समानता मेरा धर्म-कर्म, कितने  भूत  मेरे गर्त में समाये

है वही अजेय  जिसने  जीवन  रहस्य जाना
है वही कालजयी  जिसने  मेरा  मर्म  जाना
जाने कितने यहाँ आये और आकर चले गए
रहेगा वही जिसने अपना कर्म करना जाना

मैं त्रिकाल हूँ अपनी गति को स्वयं नहीं रोक सकता
मैं मरना भी गर कभी चाहू तो कभी मर नहीं सकता
कालांतर से निरंतर तक चलना ही मेरा जीवन है
काया तो नश्वर है     मानव धर्म कर्म ही जीवन है

रफ्ता रफ्ता बस   तुम मेरी रफ़्तार लो
मेरा सदुपयोग कर खुद को सँभाल लो
मेरी धारा में     जब भी आओगे
अपनी जीवन नैया पार पाओगे

पेट बड़ा शैतान

पेट की गहराई  भाई  किसको  समझ  है आई?
वो भी जान नहीं पाया जिसने दुनियां है बनाई
क्योंकि पेट बड़ा शैतान रे पगले ........................
पेट की खातिर इंसान देखो कितने पाप कमाए
पेट की खातिर इंसान ने धर्मो के जाल बिछाए
पेट  ही सारे  झगडे  की जड़ , है  यारों  संसार की
धन-दौलत सब पेट की खातिर वर्ना है बेकार की
पेट के कारण ही  अल्लाह इंसान  है समान
फर्क है बस   लेनेवाले से देनेवाला है महान
इसलिए तो कहता हूँ मैं , मेरा कहना ले तू मान
पेट बड़ा शैतान रे पगले
पेट बड़ा शैतान रे पगले

ईश्वरीय सन्देश


ईश्वर ने की  जिरह ,अपने से कुछ इस  तरह
इंसान ने सबकुछ पाया , आश्चर्य किस तरह!

इंसान  जिसे मैंने  स्वयं  स्वरुप  में  ढाला है
ज्ञान से मानव ने क्या कुछ नहीं कर डाला है

पञ्च  तत्वों  का  मानव  जब  इनको अलग करेगा
इनके सदुपयोग से बचेगा और दुरूपयोग से मरेगा

इतनी सुंदर कायनात पर मैंने देवों संग अवतार लिया
फिर क्यों इंसान ने इसे  देश-जात धरम में बाँट दिया?

जबकि सबकी एक ही धरती , एक ही सूरज  एक ही चंदा
काम क्रोध मद मोह त्याग , क्यों नहीं बनता  नेक  बन्दा

क्यों आन पड़ी इंसान को ,बम-मिसाइल बनाने की
प्रेम में मेरा वास  कर निश्छल प्रेम से मुझे पाने की

काया माया सब नश्वर है  , इन पर मत कर तू अभिमान
मेरे  उर   में  खेती  कर, ले जनम मरण से  मुक्ति प्रमाण

क्षमा  , दया , तप, त्याग , निश्छल  प्रेम  मेरी  जान है
इन्ही   गुणों   से पूर्ण   प्राणी ,  भगवान   के   समान है

कर्मभूमि भारत


मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 
क्यों विश्व है अनजान , मेरा भारत है महान 

सृष्टि रचने  वाले बाबा   भोले का  यहाँ  निवास है 
यमुना तट पर कान्हा तो सरयू में राम निवास है 
पुष्कर में  ब्रह्मा तो  मेहंदीपुर में  है हनुमान 
मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 

उत्तर में पर्वत  पर देखो  माँ वैष्णो  रहती है 
हिमालय पर्वत से देखो  माँ  गंगा  बहती है 
संस्कार की सिन्धु गंगा,सबका करे कल्याण 
मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 

नानक ईसा गौतम जैन का ताप को जग ने जाना है 
चार वेद और अष्ट सिद्धि ,नौ निधियां यहाँ खजाना है 
पत्थर में बसते है जहां,अल्लाह,ईसा और भगवान
मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 

मानवता से  आज बड़ा  कोई  भी  धर्म  नहीं है 
निस्वार्थ परमार्थ जीना जीवन का धर्म यही है 
जिए जो मानवता के लिए बन जाये साँई समान
मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 

देवों की  पावन भूमि को  मेरा शत शत  प्रणाम 
अपनी भारत भूमि पर  हम सबको है अभिमान 
माँ और मानवता के लिए सब कर देंगे बलिदान 
मेरा भारत है महान ,  मेरा भारत  है महान 


मकसद


वैसे तो ये दुनिया , इक मुसाफिर खाना है 
हममे से  हर एक  को , इक  रोज  जाना है 
कर जाये  कुछ ऐसा , जहां में  ऐ  दोस्तों !
पत्थर की इक लकीर से , सारा जमाना है 

हसरत  जहां  से  है  ,तुम  सबको  दोस्तों 
हसरत तो जहां को भी है तुमसे ऐ दोस्तों 
सूरज की इक किरण से जग को जगमगाना है 
वैसे तो ये दुनिया , इक मुसाफिर खाना है 
हममे से  हर एक  को , इक  रोज  जाना है 

फूल खिलते है जहां में , मिलते है हर जगह 
कोई नाजनीन के गजरे में,कोई चढ़े दरगाह 
हो तुम फूल बागवां के जिसे गुलशन महकाना है
वैसे तो ये दुनिया , इक मुसाफिर खाना है 
हममे से  हर एक  को , इक  रोज  जाना है 

इंसानियत मिट जाये , कहीं लुट जाये न 'चमन' 
मकाँ का तार-ऐ-नफस, कहीं टूट न जाये 'अमन'
मिटा के नफरत इस जहां से ,नया जहां बसाना है 
वैसे तो ये दुनिया , इक मुसाफिर खाना है 
हममे से  हर एक  को , इक  रोज  जाना है 



माँ की कृपा


राजा, रंक, फ़कीर सब  माँ तेरे दर आते 
जय माता दी गाते गाते दर्शन तेरे पाते

तू सबकी झोली माँ ,खुशियों से भर देती
बदले में माँ सबसे  नारियल चुन्नी लेती 

तेरी क्या  शान निराली है
तू  मेहरा   पहाड़ा  वाली है
तू सबके दुःख हरने वाली है
दुष्टों का नाश करने वाली है

जोर से बोलो   जय माता दी
मिलकर बोलो जय माता दी

मैं भी तेरे दर आई माँ ,मेरी झोली भी भर दे
तू है जग की माता , तू सबकी  झोली भर दे 

तेरे शरण में आई  माँ , मेरी आस  तू  पूरी कर दे
जनम-२ की प्यासी अँखियाँ तेरे दर्शन को तरसे

दे दे अंधे को आँख , दे कोढ़िन को काया 
सब बाझँ को पुत्र दे ,माँ निर्धन को माया 

पूरी कर दे सबकी आशा ,  माँ  चिंतपूर्णी माता 
सबको सबकुछ मिल जाता जो तुझको ध्याता  
जोर से बोलो   जय माता दी
मिलकर बोलो जय माता दी


तेरी क्या  शान निराली है
तू  मेहरा   पहाड़ा  वाली है
तू सबके दुःख हरने वाली है
दुष्टों का नाश करने वाली है


जोर से बोलो   जय माता दी
मिलकर बोलो जय माता दी


माँ


माँ क्या होती है , माँ तो माँ होती है
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 

जिससे पंचतत्वों का संचार होता है 
जो केवल जीवन का आधार होती है 
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 

माँ  ईश्वरीय  शक्ति  है , माँ  ईश्वरीय  भक्ति  है 
माँ दया का सागर है ,माँ ममता की गागर है
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 

माँ है मंदिर,माँ मस्जिद,माँ गिरजा गुरुद्वारा है
माँ  का  आँचल  ही  तो  यारों , स्वर्ग  हमारा  है
माँ के कितने ही रूप है उसका एक ही स्वरुप है 
ममता जिसका आँचल , आँखें  शक्ति  स्वरुप है
माँ क्या होती है , माँ तो माँ होती है
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 


रखे जो पल पल की खबर , वो है माँ की नज़र
माँ  की  हर  दुआ , करे  दवा  की  तरह  असर
माँ मन्त्र भी है , माँ तंत्र भी है
माँ तो सर्वत्र है , माँ जंत्र भी है 
माँ क्या होती है , माँ तो माँ होती है
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 


जप  ले  प्राणी  अभी , मोक्ष  मिलेगा  तभी
माँ ही परमात्मा है ,हममे जिसकी आत्मा है
माँ क्या होती है , माँ तो माँ होती है
माँ  जाँ  होती है , माँ  जहां  होती  है 


प्रार्थना


हम पे कृपा करो भगवान ,
हे कृपानिधान ! हे कृपानिधान!
हम बालक तेरे अज्ञान    ,    
हे कृपानिधान ! हे कृपानिधान!

सगरी माया तुम धरो , मोहे अपनी शरण लो
प्रभु सगरी माया तुम धरो ..............................
हमें कंचन सा करो , न हो अंतर्ध्यान
हे कृपानिधान!  हे कृपानिधान!

प्रभु तुम हमरे करतार , करो हमरी नैय्या पार
हम बीच खड़े मझधार , लो हमें सँभाल

हे कृपानिधान ! हे कृपानिधान!
हम पे कृपा करो भगवान, हे कृपानिधान ! हे कृपानिधान!

सब जगह मची त्राहि , कछु दिखे नहीं माहि
हो तुम सर्वेसर्वा , हम तुमरी संतान
हे कृपानिधान ! हे कृपानिधान!
हम पे कृपा करो भगवान , हे कृपानिधान! हे कृपानिधान!