Monday, June 20, 2011

कौन है ?

हम खुद कितना जानते है, क्या खुद को पहचानते है?

इतनी विशाल धरती और अपार हवा-पानी का भंडार
इस रहस्यमय ब्रह्माण्ड का   आखिर निगहबान कौन है?

जहां के लोग क्यों लड़ते है? , मरते है धर्म के लिए
शायद पता नहीं उन्हें  कि, हममें  से  इन्सान  कौन है ?

पल पल का सुख  जी लेने को  अब  आमादा  है हर कोई
नहीं जानते तो बस  हम , जिन्दगी की पहचान कौन है?

तिल तिल कर जी रहे है हम बस अपनों के लिए
किसे पता  रंग बदलती दुनियां में अरमान कौन है?

बस हम खुद को तराशें , सब विकारों को त्यागकर
वर्ना इस पाप-नफरत की दुनियां में भगवान् कौन है?




पेट बड़ा शैतान

पेट की गहराई भाई , किसको समझ है आई
वो भी जान नहीं पाया जिसने ये दुनियां बने
क्योंकि पेट बड़ा शैतान रे पगले पेट बड़ा शैतान.......

पेट की खातिर इन्सां , जाने कितने पाप कमाए
पेट की खातिर इन्सां ने , धर्मो  के जाल बिछाए

भगवन और इन्सां के बीच पेट का ही झगड़ा है
भगवन ने इन्सां को तो पेट के लिए ही रगड़ा है

पेट  ही सारे  झगड़े  की जड़ , है  यारों  संसार की
धन दौलत सब पेट की खातिर वर्ना है बेकार की

पेट के कारण ही इन्सां - अल्लाह  है सामान
फर्क है तो बस लेनेवाले से देनेवाला है महान

देता है वो भी सबको लेकिन कुछ लेने के बाद
बस  थोड़ी  सी  श्रद्धा  और  थोड़ा  सा  विश्वास 

इसलिए  तो कहता हूँ मैं लो मेरा कहना तू मान
क्योंकि पेट बड़ा शैतान रे पगले पेट बड़ा शैतान.......