Saturday, November 26, 2011

आतंक में सुकून

लोगों की धारणा है  अशांति  शस्त्रों  से  फैलती है
कलयुग में तो शांति ,शस्त्रों के साए में मिलती है 


मरने का खौफ तो  अब जर्रे जर्रे में  वाकिफ है 
मजहब का तीर तरकश-ए-खौफ में काबिज़ है


क्यों आज हर धर्मसभा , पहरे की मोहताज़ है
क्योकि हर दिल में बस ,आतंक का ही राज है


सारे धर्मान्धी आज बस , आतंक की  भाषा जानते है 
साधू,मौला,पंडित,ज्ञानी , शस्त्रों में  ज्ञान  खंगालते है


बिना आत्मज्ञान के,मानव जीवन है बेकार 
आत्मज्ञान  ही  है  बस , जीवन का  आधार


जो जीने की कला जानते है,जीवन को वही पहचानते है
इंसानियत के  वही फ़रिश्ते , परमेश्वर  को  पहचानते है    

फरियाद

तेरे  दर  पे  आया  हूँ , माँ  लेके मैं फरियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

तेरे दर से गया नहीं,माँ अबतक कोई खाली
हम तेरे  बाग  के फूल , तू  बागों  की  माली
तेरे हाथों रखी है ,सबके जीवन की बुनियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

कर दे सब पे माँ करम, मिट  जाये  सब  भरम
कट जाये सबके दुःख , सबको दे दे ऐसी भस्म
तू  जहाँ  की दाती है , है सब तुझसे आबाद 
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

मेरे दिल की सुन सदा , ऐ जहाँ ने खुदा!
तुने सबको सब दिया , ऐ मालिके जहाँ!
माँ चरणों में दे शरण , कर दे पूरी फरियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

Sunday, November 20, 2011

जिन्दगी-- एक सफ़र

जिंदगी    की   आपाधापी  
चलती लड्खाती बलखाती 
बचते   बचाते   बस   यूंही  
जाने  कैसे  कब कट जाती 


कुछ  सोच  भी  नहीं  पाते 
कुछ  सोचते  ही  रह जाते
आखिर    जिन्दगी    क्या   है  
जिन्दगी का क्या फलसफा है 


जिन्दगी   के  क्या   मायने  है 
यही  तो  हम सबको जानने  है 
कुछ के लिए जिन्दगी देखो बन गयी बला है 
कुछ जिए  जा रहे  है  सोचकर 
ये तो साँसों  का सिलसिला  है 


क्या  अपने और  अपनों के लिए  ही  जीना  ही  जीना  है?
जिए  जो  औरो  के  लिए  उनका  जीना  ही  तो  जीना  है 

हकीकत

मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

डरते न गर खुदा से जाने क्या कर जाते
जीने की आरजू में , मौत से डर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

जाना पड़ेगा एक दिन , इस अंजुमन से दिल
जीते हैं वो जो औरों के लिए कुछ कर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

इस दिल का क्या करे , जिसने खाना किया ख़राब
दो जून रोटी के लिए, हर हद से गुजर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है