Saturday, November 26, 2011

आतंक में सुकून

लोगों की धारणा है  अशांति  शस्त्रों  से  फैलती है
कलयुग में तो शांति ,शस्त्रों के साए में मिलती है 


मरने का खौफ तो  अब जर्रे जर्रे में  वाकिफ है 
मजहब का तीर तरकश-ए-खौफ में काबिज़ है


क्यों आज हर धर्मसभा , पहरे की मोहताज़ है
क्योकि हर दिल में बस ,आतंक का ही राज है


सारे धर्मान्धी आज बस , आतंक की  भाषा जानते है 
साधू,मौला,पंडित,ज्ञानी , शस्त्रों में  ज्ञान  खंगालते है


बिना आत्मज्ञान के,मानव जीवन है बेकार 
आत्मज्ञान  ही  है  बस , जीवन का  आधार


जो जीने की कला जानते है,जीवन को वही पहचानते है
इंसानियत के  वही फ़रिश्ते , परमेश्वर  को  पहचानते है    

फरियाद

तेरे  दर  पे  आया  हूँ , माँ  लेके मैं फरियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

तेरे दर से गया नहीं,माँ अबतक कोई खाली
हम तेरे  बाग  के फूल , तू  बागों  की  माली
तेरे हाथों रखी है ,सबके जीवन की बुनियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

कर दे सब पे माँ करम, मिट  जाये  सब  भरम
कट जाये सबके दुःख , सबको दे दे ऐसी भस्म
तू  जहाँ  की दाती है , है सब तुझसे आबाद 
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

मेरे दिल की सुन सदा , ऐ जहाँ ने खुदा!
तुने सबको सब दिया , ऐ मालिके जहाँ!
माँ चरणों में दे शरण , कर दे पूरी फरियाद
सबकी बिगड़ी बनादे, सबको कर दे आबाद 

Sunday, November 20, 2011

जिन्दगी-- एक सफ़र

जिंदगी    की   आपाधापी  
चलती लड्खाती बलखाती 
बचते   बचाते   बस   यूंही  
जाने  कैसे  कब कट जाती 


कुछ  सोच  भी  नहीं  पाते 
कुछ  सोचते  ही  रह जाते
आखिर    जिन्दगी    क्या   है  
जिन्दगी का क्या फलसफा है 


जिन्दगी   के  क्या   मायने  है 
यही  तो  हम सबको जानने  है 
कुछ के लिए जिन्दगी देखो बन गयी बला है 
कुछ जिए  जा रहे  है  सोचकर 
ये तो साँसों  का सिलसिला  है 


क्या  अपने और  अपनों के लिए  ही  जीना  ही  जीना  है?
जिए  जो  औरो  के  लिए  उनका  जीना  ही  तो  जीना  है 

हकीकत

मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

डरते न गर खुदा से जाने क्या कर जाते
जीने की आरजू में , मौत से डर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

जाना पड़ेगा एक दिन , इस अंजुमन से दिल
जीते हैं वो जो औरों के लिए कुछ कर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

इस दिल का क्या करे , जिसने खाना किया ख़राब
दो जून रोटी के लिए, हर हद से गुजर जाते है
मंदिर मस्जिद लोग क्यों कर जाते है
दर असल लोग   वहां   डर कर जाते है

Monday, October 24, 2011

विनती

हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये 
सब बुराई दूर कर , हमें  अपनी  शरण  लीजिये  

ऐसी कृपा और दया , हम पे  हो  परमात्मा 
सबका दिल हो निर्मल,सब  बने धरमात्मा
हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये ...

हो  उजाला  सबके  मन में , ज्ञान के  प्रकाश से 
कोई किसी का बुरा करे न,जिए इस विश्वास से 
हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये ....

शुद्ध करो सबके मन को , प्रभु अपने ज्ञान से 
मान बढ़ाओ भक्तो का , प्रभु भक्ति के दान से 
हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये ....

सत्य को धारण करे , मुक्त रहे  विकारों से सदा 
तेरी भक्ति में रहे मगन ,विचरे निर्भय हम सदा
हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये ....

रक्षा करो  हमारी  प्रभु ! अपनी  शरण  रखे सदा 
ॐ ज्योति से दूर हो ,सबके मन का अँधेरा सदा 
हे दयामय !आप हम पर इतनी करुणा कीजिये 
सब बुराई दूर कर , हमें  अपनी  शरण  लीजिये  






प्रभु प्रकाश

परमेश्वर के ध्यान में ,  जिसने लगाईं  है  लगन 
उसको मिली सुख-शांति ,मन उसका रहे मगन 

काम, क्रोध, मद, मोह ,लोभ, सब शत्रु  है  बलवान 
इनके दमन के लिए ,कर सको तो करो पूरा जतन
परमेश्वर के ध्यान में ,  जिसने लगाईं  हो लगन 
उसको मिली सुख-शांति ,मन उसका रहे मगन 

खुद को बना लो निर्मल, मन  की शांति  के लिए
ईर्ष्या की अग्नि से बचे,जो दिल में करे  है जलन
परमेश्वर के ध्यान में ,  जिसने लगाईं  है  लगन 
उसको मिली सुख-शांति ,मन उसका रहे मगन 

जग में सबसे प्यार कर , त्याग दे तू बैर भाव को
छोड़ दे टेढ़ी चाल को ,ठीक कर  तू अपना चलन 
परमेश्वर के ध्यान में ,  जिसने लगाईं  है  लगन 
उसको मिली सुख-शांति ,मन उसका रहे मगन 

उसकी  माया अदभुत  है ,जिसने  रचा  संसार है 
दुःख चिंता सब त्याग दे ,ले तू बस उसकी शरण 
परमेश्वर के ध्यान में ,  जिसने लगाईं  है  लगन 
उसको मिली सुख-शांति ,मन उसका रहे मगन 





Sunday, October 23, 2011

प्रभु माया

कोई चंद्रमा में देख ले, है प्रभु आभा तेरी 
तेज सूरज का नहीं, है वो प्रभु छाया तेरी 

तेरी महिमा का बखान,करती  है  रचना तेरी
आके जगत में देख ले, कोई  भी महिमा तेरी 

तेरी इस सुन्दरता की है सारी दुनियाँ गवाह
तेरी सरपरस्ती में , ये चल रही दुनियाँ तेरी 

तेरी शरण की चाह में फिर रहा  अमन तेरा 
दिल में बस तू है , मिलने की  है आशा तेरी

अब तो कर नज़रे करम, मेरे प्रभु 'अमन' पे
कब से  जप  रहा हूँ  मैं , प्रभु  मैं  माला  तेरी 

माँ का दर

मांगो खुदा से सबके लिए , सबको सबकुछ मिल जायेगा
गर मांगोगे तुम खुद के लिए,खुदा खुद ही समझ जायेगा
अब आ  गए  हो दर पर उसके , जब अपने अपनों के लिए 
कुछ देर भले हो जाये शायद,कोई दर से खाली न जायेगा 
हर वक्त  याद रखो खुदा को,खुदा ही वक्त पर काम आएगा 

जा रहो  हो  किधर , फिरते  क्यों  दर बदर
आ भी जाओ इधर, ये है अम्बे रानी का दर 
जगदम्बे माता का दर,  न  फिरो  दर बदर 

माँ से रोशन है जहाँ,मुरादें पूरी करता है माँ
तेरा  भी  कट  जायेगा , करेगी  दाती  महर
आ भी जाओ इधर, ये है अम्बे रानी का दर 
जगदम्बे माता का दर,  न  फिरो  दर बदर 


माँ का लश्कर जब चले,दुखियों की आस बंधे 
दुःख छूमंतर हो जाये,माँ करे जब हमपे महर
आ भी जाओ इधर, ये है  अम्बे रानी का दर 
जगदम्बे  माता का दर,  न  फिरो  दर बदर 

माँ की शान है निराली,दर से कोई गया न खाली
देख लो तुम जिधर,गाँव गली से शहर शहर
आ भी जाओ इधर, ये है अम्बे रानी का दर 
जगदम्बे माता का दर,  न  फिरो  दर बदर 






Monday, June 20, 2011

कौन है ?

हम खुद कितना जानते है, क्या खुद को पहचानते है?

इतनी विशाल धरती और अपार हवा-पानी का भंडार
इस रहस्यमय ब्रह्माण्ड का   आखिर निगहबान कौन है?

जहां के लोग क्यों लड़ते है? , मरते है धर्म के लिए
शायद पता नहीं उन्हें  कि, हममें  से  इन्सान  कौन है ?

पल पल का सुख  जी लेने को  अब  आमादा  है हर कोई
नहीं जानते तो बस  हम , जिन्दगी की पहचान कौन है?

तिल तिल कर जी रहे है हम बस अपनों के लिए
किसे पता  रंग बदलती दुनियां में अरमान कौन है?

बस हम खुद को तराशें , सब विकारों को त्यागकर
वर्ना इस पाप-नफरत की दुनियां में भगवान् कौन है?




पेट बड़ा शैतान

पेट की गहराई भाई , किसको समझ है आई
वो भी जान नहीं पाया जिसने ये दुनियां बने
क्योंकि पेट बड़ा शैतान रे पगले पेट बड़ा शैतान.......

पेट की खातिर इन्सां , जाने कितने पाप कमाए
पेट की खातिर इन्सां ने , धर्मो  के जाल बिछाए

भगवन और इन्सां के बीच पेट का ही झगड़ा है
भगवन ने इन्सां को तो पेट के लिए ही रगड़ा है

पेट  ही सारे  झगड़े  की जड़ , है  यारों  संसार की
धन दौलत सब पेट की खातिर वर्ना है बेकार की

पेट के कारण ही इन्सां - अल्लाह  है सामान
फर्क है तो बस लेनेवाले से देनेवाला है महान

देता है वो भी सबको लेकिन कुछ लेने के बाद
बस  थोड़ी  सी  श्रद्धा  और  थोड़ा  सा  विश्वास 

इसलिए  तो कहता हूँ मैं लो मेरा कहना तू मान
क्योंकि पेट बड़ा शैतान रे पगले पेट बड़ा शैतान.......





Sunday, May 1, 2011

भगवन भक्ति

साफ़ कर लो सब दिलों को,तुम इंसानी फरिश्तों!
कब जाने अलखशक्ति के आने का,पैगाम आ जाये
कब जाने  किस  भक्त  का ,  भाग्य संवर  जा जाये

आओ  सब  प्रभु  भक्ति  में ,  ऐसे  रम जाये
भक्त  और  भगवन के बीच , वक्त थम जाये
ऐसे करे  भक्ति  की भगवन को  गुमान हो जाये
साफ़ कर लो सब दिलों को,तुम इंसानी फरिश्तों!
क्या जाने कब अलखशक्ति का , पैगाम आ जाये
कब जाने  किस भक्त का ,  भाग्य संवर जा जाये

ये धरती बने स्वर्ग , हर किसी को मिले मोक्ष
मिट जाये इस धरती से, धर्म-जाति सब दोष
मन मंदिर परमशक्ति का , परमधाम बन जाये
साफ़ कर लो सब दिलों को,तुम इंसानी फरिश्तों!
क्या जाने कब अलखशक्ति का , पैगाम आ जाये
कब जाने  किस भक्त का ,  भाग्य संवर जा जाये




Saturday, April 30, 2011

मीठी बोली

मीठी बोली-प्यार की होली
बोली  में  है  अगर  मिठास 
बनते  हैं  सब  रिश्ते   खास
इंसानियत  की  है  ये पहचान
हर  मानव  बस  करे  आभास

बिछड़ों  को  भी  ये  लाती  है  पास
दुश्मनी का  भी  करती सत्यानास
बस बोलकर देखो तुम कड़वी बोली
खुद को  ही  लगे  बन्दूक  की गोली

बोलकर  देखो   बस  मीठी  बोली
हरतरफ से  होगी  प्यार की होली
जब जब किसी ने , मीठी जुबान बोली
लोगों ने प्यार से भर दी उसकी झोली

Sunday, March 27, 2011

समाज का गणित

                  समाज  का  गणित 

आज की दुनियाँ में मानव जाति की सोच व्यक्तिगत स्वार्थ का यर्थाथ चित्रण है  क्योंकि आज का मानव सबसे पहले जिस देश में पैदा होता है वह उसी देश के किसी धर्म को अपनाकर धर्मान्धी बनकर जातीयता के मकड़जाल में  फंसकर अपना सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ कर देता है  इन अरबों लोगों में अधिकतर साधारण तो कोई वैज्ञानिक, इंजिनियर, डॉक्टर, राजनेता, वकील, व्यवसायी , साधू-सन्यासी तो कोई गुंडा बदमाश  धन ऐश्वर्य पाने के लिए अपने-अपने रोजगार धंधे के द्वारा  धर्म और जात के लिए अपना सारा जीवन दांव पर लगा देते हैं  इनमे से कुछ लोग ही जीवन के यर्थाथ को जानने की कोशिश करते हैं  लेकिन उनकी सोच भी धर्म ,काम ,अर्थ और मोक्ष पाने तक पहुँच पाती है 

हम सब पढ़-लिखकर बस पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए धर्म जाति को समर्पित हो जाते है  हमें सोचना चाहिए कि सभी जीवों में क्या क्या समानता है सभी जीवों को जीने के लिए हाथ नाक कान आँख मुहं  परमात्मा ने दिए है केवल बनावट, आकार और जलवायु के कारण अलग अलग है लेकिन इन सभी जीवों का अपना अपना एक समाज है मानव जाति का भी अपना समाज तो है लेकिन समान नहीं बल्कि असमान है 

समाज का तात्पर्य है सम+आज  अर्थात समाज में आजतक सब बराबर लेकिन मानव  लिंग ,जाति और देश-धर्म का भेद करके, शिक्षा ज्ञान और  धन वैभव को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ कहलाने महत्वकांग्क्षा में जीकर जीवन के सुख का अनुभव करता है जबकि यह सुख तो   लौकिक है  अलौकिक सुख केवल परमात्म उद्देश्य मानवता और जीवकल्याण भावना में ही निहित है 

मनुष्य परमात्मा की केवलमात्र सर्वश्रेष्ठ कृति है जो मानवता और जीवकल्याण के लिए ही जन्मा है ताकि मानव परमात्मा के उद्देश्य की पूर्ति कर सके और परमात्मा की सानिद्ध्य सुख का भागी बने  इसलिए मानव को समाज के गणित का सही आंकलन करना आना चाहिए 

Friday, January 28, 2011

आत्म दर्शन

मनुष्य केवल मात्र अखिलेश्वर परमपिता परमात्मा के स्वरुप की प्रति है जीवात्मा कर्मानुसार समस्त योनियों को भोगता हुआ मानव देह को प्राप्त करता है  यद्यपि  जीवन  के  क्रम  में मानव जीवन जीने का अवसर एक  बार  ही  मिलता  है  लेकिन  मनुष्य  जीवन  पाकर  अगर  मानव सदाचार से जीवन यापन करते हुए  निस्वार्थ  भाव  से जीवकल्याण को समर्पित  रहता है  तो वह  निश्चय  ही अगले  जनम में मनुष्य योनि को प्राप्त होता है  क्योकि  उसकी कर्मगति उर्ध्व अर्थात ऊपर की ओर जाती है  और  उर्ध्व  गति  की  ओर  जाने  वाली  उर्जारुपी  आत्मा कर्मानुसार सर्वोपरि महलोक , स्व लोक  , भुव लोक और भू लोक को प्राप्त होती है
महलोक   जहाँ परमेश्वर का स्वयं निज निवास है 
स्वलोक   अर्थात स्वर्गलोक जहाँ देवताओं का निवास है 
भुवलोक  जहाँ  अनन्य भक्तगणों  का निवास है
भूलोक    जहाँ  समस्त पितरों का निवास है  इन लोकों में केवल उन्ही जीवात्माओं अगले जनम की प्राप्ति होती है जो अपने पिछले जनम में विकारों से मुक्त होकर परमेश्वर की अनन्य भक्ति करते हुए परमार्थ और जीवकल्याण के लिए जीते हैं 
जो जीवात्माएं  विकारों अर्थात काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ में फंसे  रहते है तथा स्वार्थी बनकर ईश्वर को नकार कर जीवन यापन करते है ऐसी जीवात्माएं  अधोगति अर्थात नीच योनि को प्राप्त होती है और सदा इस मृत्युलोक में ही पशु, पक्षी और कीट-पतंगों का जीवन जीने को मजबूर रहती है 
इसलिए मनुष्य को विकारों अर्थात काम,क्रोध,मद,मोह और लोभ जो  पैदा करती है और अधोगति कर्म करने को बाध्य करती है से स्वयं नकाराक्त्मक उर्जा को मुक्त करके अपनी कर्मगति को उर्ध्व की ओर प्रेरित करना चाहिए अर्थात क्षमा , दया , तप ,त्याग और भक्ति भाव जो सकारात्मक उर्जा पैदा करते हैं जिससे जीवात्मा को परमात्मा की दिव्यज्योति का दर्शन होते है और परमात्मा से आत्मसाक्षात्कार कराती है अपने जीवन को और अपना तन,मन और धन निःस्वार्थ भक्ति भाव से जीवकल्याण सेवा के लिए समर्पित कर देना चाहिए  क्योंकि मानव  परमात्मा स्वरुप की एकमात्र प्रतिरूप है और परमात्मा का लक्ष्य सदैव जीवकल्याण होता है ....आओ हम पहले स्वयं को जाने , पहचाने हम क्या वाकई परमात्मा के प्रतिरूप है  कैसे?
सर्वप्रथम अपनी आँखों को बंद करके , शरीर और मन को मुक्त अवस्था में लाकर ध्यानमुद्रा में बैठकर चिंतन करे फिर मनन करे और अंत में मंथन करे.
१  क्या आप आँख है?
उत्तर   .... नहीं 
२  क्या आप नाक है?
उत्तर   .... नहीं 
३  क्या आप हाथ है?
उत्तर   .... नहीं 
४  क्या आप कान है?
उत्तर   .... नहीं 
५  क्या आप मुहं  है?
उत्तर   .... नहीं 
६  क्या आप सिर है?
उत्तर   .... नहीं 
७  क्या आप पैर है?
उत्तर   .... नहीं 
८  क्या आप शरीर के अन्दर का ह्रदय है?
उत्तर   .... नहीं 
९ क्या आप शरीर के अन्दर का रक्त है?
उत्तर   .... नहीं 
१० क्या आप शरीर के अन्दर का उदर अर्थात पेट है?
उत्तर   .... नहीं 
११  क्या आप मस्तिष्क है?
उत्तर   .... नहीं 
१२ क्या आप यह शरीर है?
उत्तर   .... नहीं 
१३  क्या आप शब्द है?
उत्तर   .... नहीं 
१४  क्या आप घर है?
उत्तर   .... नहीं 
जब आप शरीर का कोई अंग नहीं है तो आप शरीर भी नहीं हो सकते
जब आप इनमें से कोई नहीं है तो आप है कौन?
जब आप इनमें से हो नहीं सकते तो आप न तो नर है , न नारी है 
तो फिर आप हिन्दू , मुस्लिम, सिख , इसाई  भी  नहीं  हो सकते 
यह शरीर तो घर की तरह है और ह्रदय में स्थित मन जीवात्मा का निवास है ठीक उसी तरह जैसे रोज मनुष्य रोजी रोटी कमाने घर से बाहर जाते हैं और शाम को वापस अपने निवास स्थान पर आ जाते है 
जीवात्मा भी सोने के दौरान शरीर से निकलकर विचरण करती है और जैसे ही आँख खुलती है अर्थात भाव आते है जीवात्मा फिर से शरीर में प्रवेश कर लेती है 
अब जानने का विषय यह है कि समस्त जीवों के अंदर विद्यमान आत्मा   कौन है ? जीवात्मा का परमात्मा से कैसे सम्बन्ध हुआ?  इस सूक्षम ज्ञान को जानने के लिए प्राणी को अर्थात मनुष्य को चिंतन करना होगा  जैसे एक पिता का अपने बच्चों में केवलमात्र एक शुक्राणु से सम्बन्ध बना जबकि सहवास के दौरान हजारों शुक्राणु का प्रवाह होता है  मनुष्य के शरीर में विद्यमान शुक्राणुओं की तुलना में एक शुक्राणु का सम्बन्ध अनुपात बहुत सूक्षम है  और यह सम्बन्ध ठीक और सटीक उसी तरह बैठता है जैसे उर्जारुपी शक्ति जीवात्मा जो अति सूक्षम अंश अनुपात है परमब्रह्म परमात्मा ओउमकार की अखिल अनंत असीम शक्ति के सामने. इस तरह मनुष्य की जीवात्मा का सम्बन्ध सीधे सीधे परमात्मा से हुआ. तो मनुष्य परमात्मा के स्वरूप की प्रति ही तो हुआ... हर मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि मानव जनम परमात्मा का आशीर्वाद है जिस तरह हर माता-पिता को अपनी औलाद से उम्मीद करते है कि उनके बच्चे अच्छे पढ़े लिखे और नेक इन्सान बने और उत्कृष्ट कार्य करके संसार में माता-पिता का नाम रोशन करे.  यही उम्मीद अखिलेश्वर परमपिता परमात्मा भी सभी जीवात्माओं से करता है कि मनुष्य स्वयं को सभी विकारों से मुक्त करके अपने जीवन में असीम भक्ति भाव पैदा करके जीवन को जीव कल्याण के लिए समर्पित कर दे. ऐसा करने से जीवात्मा को परमात्मा की असीम शक्तियां मिलने लगेगी ताकि परमात्मा शक्तियों के माध्यम से जीवात्मा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर चमत्कार करके संसार में अपने होने का अहसास दिलाता है और दिखाता है ..जो जीवात्मा परमात्मा की कसौटी पर खरी उतरती है परमात्मा उस जीवात्मा को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान करता है और उसी जीवात्मा के द्वारा चमत्कार करता है तथा उस जीवात्मा को अपनी तरह देवतुल्य बनाकर सदैव के लिए पूजनीय बना देता है और उसे मोक्ष प्रदान कर अपने धाम भुवलोक  में दूत से अलंकृत कर आश्रय देता है तथा अपना संदेशवाहक दूत बनाकर अपने ईश्वरीय धर्म जीव कल्याण के प्रसार और अनुपालन के लिए महात्मा बुद्ध,महावीर जैन, सत्य सांई, गुरु नानक , मोहम्मद और लार्ड ईसा के रूप में मृत्युलोक में भेजता रहता है ..परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए मनुष्य को पानी की तरह पारदर्शी , सोने की तरह खरा बनने के लिए जप तप ,ध्यान और  योग विद्या का विधिवत अनुसरण करना होगा जिसके लिए उसे  आध्यात्मिक गुरु की शरण में जाना चाहिए न कि धार्मिक गुरु की शरण में. आध्यात्मिक गुरु गुणों की खान होता है जैसे 
धृति,क्षमा ,दमोस्तेयं, शोचिमिन्द्रिय निग्रह 
धी विद्या सत्यम  अक्रोधो  दशकं धर्मं लक्षणं 
सरलार्थ :- धैर्य रखना, क्षमा करना, संयम रखना,चोरी न करना, शरीर और मन को साफ रखना , इन्द्रियों को वश में रखना, बिना सोचे-समझे कोई काम न करना अर्थात बुद्धि से काम लेना, विद्या ग्रहण करना, सच बोलना और क्रोध न करना ये दस धर्म के मूल लक्षण हैं ... इन लक्षणों से जो गुणवान होता है वही दिव्य गुणों को प्राप्त करने का श्रेष्ठ अधिकारी होता है तथा समस्त जीवों के भावों को जान सकता है और भक्ति भाव से पैदा करके परमात्मा के दर्शन कराने का एकमात्र माध्यम है ..इसलिए तो अध्यात्मिक गुरु को भगवान से भी बड़ा माना गया है  और कहा गया है :-

गुरु  गोविन्द  दोउ  खड़े ,  काके  लागू  पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो मिलाय ...
गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु  देवो  महेश्वर
गुरु साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः   ...
इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा,विष्णु और महेश जिन्हें संसार का भगवान माना जाता है से भी श्रेष्ठ अर्थात परमब्रह्म से अलंकृत किया गया है ......
अब सभी मनुष्यों को यह जान लेना चाहिए कि हमें यह मनुष्य जीवन  परमेश्वर के विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए मिला है और पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहे ..इसलिए मनुष्य अन्य जीवों से उत्कृष्ट और अलग है..