कभी यूरिया पर कमीशन , कभी कफ़न पर गबन
सीमा पर बैचेन अमन , हर तरफ पूंजीवाद का चलन कभी शेयर का निवाला , कहीं तहलका का हवाला
कभी आरक्षण की लड़ाई , कहीं अपराध की रिहाई
संकुचित मानसिकता, आधुनिक फैशन की नग्नता
छिछली धार्मिक कट्टरता , प्रदूषित होती नैतिकता
सच्चाई पे कुठाराघात , पवित्र रिश्तों में पक्षाघात
कहीं पशु चारे पर प्रहार , कहीं नारी का बलात्कार
बढ़ता प्रकृति दोहन , अहिंसा पर हिंसा का आहोरण
धन ऐश्वर्य पाने की लोलुपता , निर्धन की विवशता
बढती विश्वग्रामी प्रतिस्पर्धा , स्वार्थ हेतु ईश्वर में श्रद्धा
हरतरफ आतंक का कहर , लोगों में साम्प्रदायिक जहर
अब तो जान गए प्रभु ! ये भी मान गए प्रभु !
कैसे इतने विकार लोकतंत्र के लहू में बह रहे हैं
कैसे इतना जहर पीकर भी लोकतंत्र जी रहे हैं
प्रभु ! अब तो अति हो गयी , हरतरफ देखो गति हो गयी
करो फिर प्रलय तांडव , ताकि सृजित हो नव मानव
प्रभु ! अतिशीघ्र करो निदान , मेरा भारत फिर हो महान