हे केशव! मेरे अंतर्मन में है महाभारत का मानव
मैं अब तक व्यथित हूँ , क्यों रोका नहीं वो तांडव
क्यों बलि चढ़ी प्रजा? जब तुम भी थे मार्गदर्शक
क्यों लड़े भीम,द्रोण,कृपा,कर्ण अश्वथामा जैसे घटक?
ये सब भी थे जब धर्मयुद्ध में आप जैसे मार्गदर्शक
आज भी है मेरे मन में ,उस युद्ध विभीषिका की कसक
धर्म और अधर्म की निति में क्यों भेंट चढ़ी प्रजा?
इस घोर अनर्थ पाप की बताओ किसे मिले सजा?
जब द्वापर के वैभव वत्सल में , हुआ ये अनर्थ
क्या जानते थे धर्म की भाषा? जो थे वहां समर्थ
निरीह बेक़सूर प्रजा बेवजह , वंशप्रतिशोध का शिकार हुई
सर्वोपरि रहा प्रजा बलिदान , वंशयुद्ध-राजधर्म की हार हुई
इसीलिए तो लोग आज भी कलयुग में कहते हैं :-
अरे ! अपने घर की रामायण मुझे मत सुना
मैंने देखी है महाभारत ,मुझे मत दिखा
कितना विभिष्तम! घोर अनर्थ , हुआ था केशव आपके होते
चाहकर भी मेरे घर में ऐसा , हो नहीं सकता कभी मेरे होते
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