Thursday, December 9, 2010

आधुनिक भारत

कभी  यूरिया  पर  कमीशन  , कभी  कफ़न  पर गबन
सीमा पर बैचेन अमन  , हर तरफ पूंजीवाद का चलन
कभी शेयर का निवाला  , कहीं तहलका का हवाला
कभी आरक्षण की लड़ाई , कहीं अपराध  की रिहाई


संकुचित मानसिकता, आधुनिक फैशन की नग्नता
छिछली धार्मिक कट्टरता , प्रदूषित होती नैतिकता
सच्चाई पे  कुठाराघात , पवित्र रिश्तों में  पक्षाघात
कहीं पशु चारे  पर प्रहार , कहीं नारी का  बलात्कार


बढ़ता प्रकृति दोहन , अहिंसा पर हिंसा का आहोरण
धन ऐश्वर्य पाने की लोलुपता , निर्धन  की  विवशता
बढती विश्वग्रामी प्रतिस्पर्धा , स्वार्थ  हेतु  ईश्वर में श्रद्धा
हरतरफ आतंक का कहर , लोगों में साम्प्रदायिक जहर


अब तो  जान गए  प्रभु !  ये भी  मान गए  प्रभु !
कैसे इतने विकार लोकतंत्र के लहू में बह रहे हैं
कैसे इतना जहर पीकर भी लोकतंत्र  जी  रहे  हैं


प्रभु ! अब तो अति हो  गयी , हरतरफ देखो गति हो गयी
करो  फिर प्रलय  तांडव ,  ताकि  सृजित  हो  नव  मानव
प्रभु ! अतिशीघ्र करो निदान ,  मेरा भारत फिर हो महान

धरती की पुकार

धरती  देखो  करे  पुकार ,  बंद  करो  ये  अत्याचार
मेरा तन क्यों तुमने काटा? क्यों मुझको देश-धर्म में बांटा?


मैंने  खून से सींचा सबको , सब लालन पालन किया तुम्हारा
फिर तुम क्यों बेकार झगड़ते? जब मेरा आँचल  है  जग सारा


तुम्हें  ज्ञान - विज्ञान का भंडार दिया ,  ये सब मानवता के लिए
क्यों करते हो अनर्गल प्रयोग,जीवन है योग का भोग और जोग


तुम जरा से बड़े क्या हुए ,  समझने लगे   खुद को   ही बड़ा
तुम तो हो नवजात अभी , मेरे जीवन से बंधा है जीवन तेरा


दिए तुम्हे जीवन के सब सुख, भक्ति की शक्ति से दूर किया हर दुःख
तुम तो हो  मेरी करुणा  का प्रसाद,बच्चों! बंद करो  ये झगड़े फसाद


गर यूँ  ही  करते रहे , सीना तुम  छलनी  मेरा
मेरे अन्त के साथ बेटा ,अन्त निश्चित  है तेरा

अंतर्द्वंद का महायुद्ध


हे केशव! मेरे अंतर्मन में है महाभारत का मानव
मैं अब तक व्यथित हूँ , क्यों रोका नहीं वो तांडव

क्यों  बलि  चढ़ी  प्रजा? जब  तुम  भी थे  मार्गदर्शक
क्यों लड़े भीम,द्रोण,कृपा,कर्ण अश्वथामा जैसे घटक?
ये सब भी  थे  जब  धर्मयुद्ध  में  आप  जैसे  मार्गदर्शक
आज भी है मेरे मन में ,उस युद्ध विभीषिका की कसक

धर्म और अधर्म की निति में क्यों भेंट चढ़ी प्रजा?
इस घोर अनर्थ पाप की बताओ किसे मिले सजा?

जब  द्वापर के  वैभव  वत्सल में , हुआ  ये अनर्थ
क्या जानते थे धर्म की भाषा? जो थे वहां समर्थ

निरीह बेक़सूर प्रजा बेवजह , वंशप्रतिशोध का शिकार हुई 
सर्वोपरि रहा प्रजा बलिदान , वंशयुद्ध-राजधर्म की हार हुई

इसीलिए तो लोग आज भी  कलयुग में कहते  हैं :-
अरे ! अपने घर  की  रामायण  मुझे  मत सुना
मैंने   देखी   है   महाभारत ,मुझे   मत   दिखा

कितना विभिष्तम! घोर अनर्थ , हुआ था केशव आपके होते
चाहकर भी मेरे घर में ऐसा , हो  नहीं सकता कभी  मेरे  होते

सत्य शिव ओउमकार


उस ओउमकर  अखिल  आधार को  जिसने  पहचान लिया
उसने  उस  परम्ब्रहम  परमपिता  परमेश्वर को जान लिया


हे !  भूतनाथ  स्वयंभू   अखिलेश  तुम   ही हो   विश्वविधाता
तुम्ही  हो  निर्गुण निरंजन न्याय नियंता  हमने  मान लिया


सर्वशिरोमानी  श्री सदाशिव  ओउमकार  ही तो  जीवनसार  है 
जिसने  भक्त का जीवन भवसागर से  पार कराना  ठान  लिया


हे  कृपालु  करूनानंद !  तुम   कर्महीन   अकर्ता   पूर्णानंद
अभयदानी  अद्वितीय  सर्वशक्तिमान  सबने  जान  लिया