Saturday, November 26, 2011

आतंक में सुकून

लोगों की धारणा है  अशांति  शस्त्रों  से  फैलती है
कलयुग में तो शांति ,शस्त्रों के साए में मिलती है 


मरने का खौफ तो  अब जर्रे जर्रे में  वाकिफ है 
मजहब का तीर तरकश-ए-खौफ में काबिज़ है


क्यों आज हर धर्मसभा , पहरे की मोहताज़ है
क्योकि हर दिल में बस ,आतंक का ही राज है


सारे धर्मान्धी आज बस , आतंक की  भाषा जानते है 
साधू,मौला,पंडित,ज्ञानी , शस्त्रों में  ज्ञान  खंगालते है


बिना आत्मज्ञान के,मानव जीवन है बेकार 
आत्मज्ञान  ही  है  बस , जीवन का  आधार


जो जीने की कला जानते है,जीवन को वही पहचानते है
इंसानियत के  वही फ़रिश्ते , परमेश्वर  को  पहचानते है    

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