Saturday, November 6, 2010

ईश्वरीय सन्देश


ईश्वर ने की  जिरह ,अपने से कुछ इस  तरह
इंसान ने सबकुछ पाया , आश्चर्य किस तरह!

इंसान  जिसे मैंने  स्वयं  स्वरुप  में  ढाला है
ज्ञान से मानव ने क्या कुछ नहीं कर डाला है

पञ्च  तत्वों  का  मानव  जब  इनको अलग करेगा
इनके सदुपयोग से बचेगा और दुरूपयोग से मरेगा

इतनी सुंदर कायनात पर मैंने देवों संग अवतार लिया
फिर क्यों इंसान ने इसे  देश-जात धरम में बाँट दिया?

जबकि सबकी एक ही धरती , एक ही सूरज  एक ही चंदा
काम क्रोध मद मोह त्याग , क्यों नहीं बनता  नेक  बन्दा

क्यों आन पड़ी इंसान को ,बम-मिसाइल बनाने की
प्रेम में मेरा वास  कर निश्छल प्रेम से मुझे पाने की

काया माया सब नश्वर है  , इन पर मत कर तू अभिमान
मेरे  उर   में  खेती  कर, ले जनम मरण से  मुक्ति प्रमाण

क्षमा  , दया , तप, त्याग , निश्छल  प्रेम  मेरी  जान है
इन्ही   गुणों   से पूर्ण   प्राणी ,  भगवान   के   समान है

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