Saturday, November 6, 2010

समय

मैं समय हूँ   ,  मैं समय हूँ
हरेक के साथ हर समय हूँ
मेरा जीवन है आदी अंत
और आदी अंत है अनंत

हो तुम कौन? किस  देश धर्म के?  यहाँ  किसलिए  आये?
समानता मेरा धर्म-कर्म, कितने  भूत  मेरे गर्त में समाये

है वही अजेय  जिसने  जीवन  रहस्य जाना
है वही कालजयी  जिसने  मेरा  मर्म  जाना
जाने कितने यहाँ आये और आकर चले गए
रहेगा वही जिसने अपना कर्म करना जाना

मैं त्रिकाल हूँ अपनी गति को स्वयं नहीं रोक सकता
मैं मरना भी गर कभी चाहू तो कभी मर नहीं सकता
कालांतर से निरंतर तक चलना ही मेरा जीवन है
काया तो नश्वर है     मानव धर्म कर्म ही जीवन है

रफ्ता रफ्ता बस   तुम मेरी रफ़्तार लो
मेरा सदुपयोग कर खुद को सँभाल लो
मेरी धारा में     जब भी आओगे
अपनी जीवन नैया पार पाओगे

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