कहीं क्षत्रिय महासंघ तो कहीं ब्राहमण परिसंघ
कहीं वैश्य परिसंघ तो कहीं अनुसूचित महासंघ
धर्म-जाति भाषा के नाम पे क्यों हो रही है जंग?
भारत की पावन देवभूमि पे किसने लगाया कलंक
यह देख के मेरा कोमल हृदय हो गया है दंग
कैसे हो पावन इस धरती का हर कोना हर अंग
माना कि प्यारों तुमने खुद ही खुद को वर्गों में बांटा है
हिन्दू मुस्लिम बनके तुमने बस अपनों को ही काटा है
अब लहूलुहान हो गयी है प्यारों! यह पावन धरा
किस किसको समझाऊ समझाना मुशिकल है बड़ा
हर किसी को चाहिए ठगनी माया की भव्यता
रक्तरंजित है मानवता कहाँ है गृहस्थ में दिव्यता
अब वक्त नहीं है बचा सबको सुधरने को कहूँ
क्यों न इस मलिन क्रीडा का अंत मैं शीघ्र करूँ
क्यों न अपनी विप्लव ज्वाला से ऐसी आग लगाऊं
सारी मानव जाति को मिटाकर नयी दुनियां बसाऊं
कहीं वैश्य परिसंघ तो कहीं अनुसूचित महासंघ
धर्म-जाति भाषा के नाम पे क्यों हो रही है जंग?
भारत की पावन देवभूमि पे किसने लगाया कलंक
यह देख के मेरा कोमल हृदय हो गया है दंग
कैसे हो पावन इस धरती का हर कोना हर अंग
माना कि प्यारों तुमने खुद ही खुद को वर्गों में बांटा है
हिन्दू मुस्लिम बनके तुमने बस अपनों को ही काटा है
अब लहूलुहान हो गयी है प्यारों! यह पावन धरा
किस किसको समझाऊ समझाना मुशिकल है बड़ा
हर किसी को चाहिए ठगनी माया की भव्यता
रक्तरंजित है मानवता कहाँ है गृहस्थ में दिव्यता
अब वक्त नहीं है बचा सबको सुधरने को कहूँ
क्यों न इस मलिन क्रीडा का अंत मैं शीघ्र करूँ
क्यों न अपनी विप्लव ज्वाला से ऐसी आग लगाऊं
सारी मानव जाति को मिटाकर नयी दुनियां बसाऊं
No comments:
Post a Comment