Saturday, November 6, 2010

महिमा



प्रभु!   मैं  कभी - कभी  इतना  बैचेन  हो  जाता  हूँ
तुझसे बराबरी करने का गुनहगार खुद को पाता हूँ

कभी खुद को कोसता हूँ ,कभी इतना अधिक सोचता हूँ
आपकी महिमा इतनी अपरम्पार कैसे है?
प्रबुद्धजन कहते हैं  कि आप हमारे जैसे हैं

आप कैसे इतने-इतना चमत्कार कर लेते हो?
कैसे  दुनियाँ के दुखों में  साक्षात्कार रहते हो?

जबकि अरबी अरबी  में फरमाता है  और  अंग्रेज अंग्रेजी  में गाता है
भारत में ही कितनी भाषा है हर भारती अपना दुखड़ा तुमसे गाता है
कैसे सबकी अर्ज आपकी समझ में आता है?
यही  सोचना  अक्सर  मुझको  भरमाता है

दुनियाँ  में  नित  सब  अपनी  भाषा  में  आपसे  फरमाते  है
आप अल्लाह-ईसा-नानक-गौतम बन सबकी समझ जाते है

प्रभु!  अपनी बनाई  महिमा तो  मैंने कई  देखी है
लेकिन आपकी महिमा साक्षात् मैंने नहीं देखी है
प्रभु ! मुझे  अपनी  महिमा  साक्षात् दिखलाओ
मैं अज्ञानी बालक मुझको साफ साफ बतलाओ

दुनियाँ में आपने इतने भाषा धर्म क्यों बनाये?
देख तेरी दुनियाँ अब देश धर्म पे मिटती जाये
इंसान  जब  बनाये  तो  इंसानियत  क्यों  नहीं  बनाई
क्यों हो रही है जहाँ में शैतानियत की हौसलाअफजाई

प्रभु! देख  तेरे गगन से  धुआं उठ रहा है
शायद इंसानियत का चमन जल रहा है
क्या  यही  है  आपकी  महिमा , हर  शख्स  क्यों  है  सहमा
ले  अभी इन्हें सँभाल नहीं तो दुनियाँ है दो दिन की महमाँ

जब  सब  भाषा  आपको  समझ  आती  है
तो   मेरी   आपको   क्यों    नहीं    भाती है
प्रभु! मेरी अर्ज सुनो , सबको सामान करो
नहीं  तो  मैं  आपके  सारे  राज खोल दूंगा
हो सका तो आपके पीछे जासूस छोड़ दूंगा

आपको याद हो अब मैं भी स्वर्ग में sattelite लगा सकता हूँ
आपके दरबार में क्या क्या होता है    सबको दिखा सकता हूँ

यदि  नहीं तो प्रभु !  शीघ्र  मेरी अर्ज सुनो
इंसानियत ईजाद कर धरा को पवन करो

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