Saturday, November 6, 2010

बंद आँखों का रहस्य

बंद आँखों से  देखोगे , तो सब कुछ  दिखाई देगा
अनंत गोचर में अलख त्रिकालदर्शी दिखाई देगा

कौन कहता कि  बंद आँखों से कुछ दिखाई नहीं देता
वो देखता है सबको पर खुद सबको दिखाई नहीं देता

मन कि आँखों से जब हम अनंत सैर को चलते हैं
पूरे ब्रह्माण्ड में चाँद सूरज तारें सब तैरते दिखते हैं

मन बेकाबू होकर जब सूरज के पार निकल जाता है
एकाग्र वेग से मन ब्रह्माण्ड के स्वर्ग पे उतर आता है

मनोयंत्र से जब मैं  सूरज के  अन्दर तक गया
क्या छटा थी! लगा कि मैं सागर मैं उतर गया

पलभर में मैं  आगे बढ़ा चारों तरफ  क्या हरियाली थी!
सोने चाँदी की राहों में  बस ख़ामोशी ही खुशियाली थी

ज्योंही आगे बढ़ा सामने तारों का स्वर्नमहल था
रत्नों  से जगमगाता  कितना  अनोखा  शहर  था !

पंचतत्वों ने क्या सुंदर छटा बिखेर रखी थी
अलख शक्ति ने क्या दुनिया उकेर रखी  थी !

हवा में लहराता  मैं  जलपरियों संग  गुनगुनाता गया
ओउम नमः शिवाय  जपते-जपते मैं आगे जाता गया

सामने क्या आलौकिक विशाल प्रकाश पुंज था
अथाह प्रकाश में ही    शिव ॐ   का निकुंज  था

जीवन प्रकाश की करुण वंदना  कर रहे थे असंख्य सूरज
करके  दर्शन  अलख  शक्ति का  मेरे मन को मिला धीरज

बंद आँखों के   मनोवेग से   जो  अनंत  को गया
जिनको हो गए दर्शन  उन्हें तो मोक्ष मिल गया



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