मिलने की आरजू है तो खुद को मिटा के देख
पर्दानशीं गर है तो , परदे में आ के देख
मंदिर में रहते भगवन कहते है पंडित जी
मस्जिद खुदा का घर है कहते है शेख जी
है सब खुदा का नूर फिर इंसां को क्यों है गुरुर
खुद में खुदा का घर , खुदी को मिटा के देख
पाना है गर सनम को , खो बैठो तुम खुदी को
जाओगे तुम फिर जहाँ तुम पाओगे तुम उसीको
जो दरिया है पार करनी , दरियादिली तो सीख
दरियादिली से एक बार , दरिया में जा के देख
हर बुत में है अदा , बस नज़रों का फेर है
है सच्ची दिल्लगी तो , बस मिलने की देर है
उल्फत में सनम की , दिल को लगाना सीख
नज़रों से नज़र अपनी , कुछ देर मिला के देख
मिलने की आरजू है तो खुद को मिटा के देख
पर्दानशीं गर है तो , परदे में आ के देख
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