अलख परमशक्ति ने जब पंचतत्वों में हम सबको है ढाला
आदम ने फिर क्यों खुद को यूं देश-जात , धर्म में है पाला
दुनियाँ में मानव बस मोह - माया के चक्कर में पड़ा है
कोई जात के लिए , कोई धर्म के लिए , कोई पद पे अड़ा है
आज आदमी हैवानियत की हर हद को पार किये जा रहा है
कुदरत के नियमों को तोड़ कर जहाँ से दुश्मनी लिए जा रहा है
इसलिए दुनियाँ में हर तरफ हिंसां का शोर है
त्राहि-त्राहि कर रही देखो दुनियाँ चारों ओर है
क्या कोई मौला-पंडित आज बस इतना बता सकता है?
हिन्दू हिन्दू ही पैदा होगा मुस्लिम मुस्लिम पैदा होगा
नर नर ही पैदा होगा और नारी नारी ही पैदा होगी
क्या कोई मौला पंडित शास्त्री साबित कर दिखा सकता है?
क्षण भर जीवन जीकर भी, फूल अपनी खुशबू से महकता है चमन
जात-धर्म का अहम् त्यागकर क्यों मानव नहीं अपनाता है अमन
हे वाहेगुरुपरम्पिता अल्लाहईसा! इस मैली दुनियाँ को मिटा दो
बस इंसानियत के फूल खिलाकर,फिर एक नई दुनियाँ को बना दो
नई दुनियाँ में फिर न हो देश ,जात-धर्म का बोलबाला
इंसानियत के दिव्य प्रकाश से हो सारे विश्व में उजाला
आदम ने फिर क्यों खुद को यूं देश-जात , धर्म में है पाला
दुनियाँ में मानव बस मोह - माया के चक्कर में पड़ा है
कोई जात के लिए , कोई धर्म के लिए , कोई पद पे अड़ा है
आज आदमी हैवानियत की हर हद को पार किये जा रहा है
कुदरत के नियमों को तोड़ कर जहाँ से दुश्मनी लिए जा रहा है
इसलिए दुनियाँ में हर तरफ हिंसां का शोर है
त्राहि-त्राहि कर रही देखो दुनियाँ चारों ओर है
क्या कोई मौला-पंडित आज बस इतना बता सकता है?
हिन्दू हिन्दू ही पैदा होगा मुस्लिम मुस्लिम पैदा होगा
नर नर ही पैदा होगा और नारी नारी ही पैदा होगी
क्या कोई मौला पंडित शास्त्री साबित कर दिखा सकता है?
क्षण भर जीवन जीकर भी, फूल अपनी खुशबू से महकता है चमन
जात-धर्म का अहम् त्यागकर क्यों मानव नहीं अपनाता है अमन
हे वाहेगुरुपरम्पिता अल्लाहईसा! इस मैली दुनियाँ को मिटा दो
बस इंसानियत के फूल खिलाकर,फिर एक नई दुनियाँ को बना दो
नई दुनियाँ में फिर न हो देश ,जात-धर्म का बोलबाला
इंसानियत के दिव्य प्रकाश से हो सारे विश्व में उजाला
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