Saturday, November 6, 2010

" मैं कौन हूँ? "

" मैं  कौन  हूँ? " 

"मैं  कौन  हूँ " यहाँ  बस यही  जानना  है
खुदी को मिटाकर खुदको पहचानना है
जीने का फलसफा बस प्यार है जहाँ में
निश्छल  प्रेम ही   कुदरत का खजाना है

लोग यूं ही क्यों  ,  मजहब के लिए लड़ते हैं ?
हैवान बनके क्यों इंसानियत का खून करते हैं
जबकि सबकुछ तो है जहाँ में सबके लिए
बस  दो   गज  जमीं  ,जहाँ  में हैं  सबके   लिए

पैगाम दे दो  जहाँ में , ऐ जमीं  के खुदाओं  , संभल जाओ
जलजला आने से पहले  नसीहत   सब इन्सान बन  जाओ
मुझे  ये  जहाँ  हिन्दू  माने  या  मुस्लमान  माने
"मैं  कौन  हूँ " हर प्राणी  बस  खुद को  पहचाने

मैं  तो  यहाँ  सिख - इसाई   बन के  भी  जिया
बुध-जैन  का चोला  भी  मैंने यहाँ पहन  लिया
अब   तुम   खुद   ही   पहचान लो     "मैं  कौन  हूँ "
तुम मेरा मकसद  हो पहचान लो "मैं  कौन  हूँ "


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