" मैं कौन हूँ? "
"मैं कौन हूँ " यहाँ बस यही जानना है
खुदी को मिटाकर खुदको पहचानना है
जीने का फलसफा बस प्यार है जहाँ में
निश्छल प्रेम ही कुदरत का खजाना है
लोग यूं ही क्यों , मजहब के लिए लड़ते हैं ?
हैवान बनके क्यों इंसानियत का खून करते हैं
जबकि सबकुछ तो है जहाँ में सबके लिए
बस दो गज जमीं ,जहाँ में हैं सबके लिए
पैगाम दे दो जहाँ में , ऐ जमीं के खुदाओं , संभल जाओ
जलजला आने से पहले नसीहत सब इन्सान बन जाओ
मुझे ये जहाँ हिन्दू माने या मुस्लमान माने
"मैं कौन हूँ " हर प्राणी बस खुद को पहचाने
मैं तो यहाँ सिख - इसाई बन के भी जिया
बुध-जैन का चोला भी मैंने यहाँ पहन लिया
अब तुम खुद ही पहचान लो "मैं कौन हूँ "
तुम मेरा मकसद हो पहचान लो "मैं कौन हूँ "
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