Saturday, November 6, 2010

सतगुरु

सतगुरु
गुरु वही जो सर्वश्रेष्ठ है शाश्त्रार्थ में
धर्मगुरु जो मग्न है धर्म प्रसारार्थ में
कलयुग में चहुँ ओर लगा है धर्मगुरुओं का पंडाल
सुरक्षा शांति महफूज  मगर बाज नहीं आते चंडाल
बेबस मानव सुख शांति के लिए आता गुरु शरण
सुख शांति पाने के लिए गीता कुरान में है मगन
ईश्वरीय साक्षातकार का दिव्य स्वप्न दिखाते है सब धर्मगुरु
ईश्वरीय   व्यक्तिवाद    की   पूजा    बस    सिखाते   है    सब धर्मगुरु
क्यों मोह,  माया,  मद,  विकार से    वो खुद को   बचा नहीं पाते
खुद को सर्वश्रेष्ठ कहलाने की होड़ में खुद को झुका नहीं पाते
सबकुछ   निहारे ईश्वर ,   सब पर करे रहम
समदर्शी ब्रह्मा विष्णु महेश कहता शिवोहम

No comments:

Post a Comment