Saturday, November 6, 2010

मौत की शहादत


जिन्दादिली  से , जीना यारों इबादत  है
कैसे किसकी जिन्दगी ,यारों शहादत है
जिन्दगी  जीने का  बस  यही  मौका  है
मौत तो यारों बस इक हवा का झौंका है

जिसने  भी  मैं  को  नज़दीक  से देखा है
हकीकत है उसने मौत को करीब देखा है
मौत को यारों  अब तक  किसने रोका है?

मौत तो यारों  बस इक हवा का झौंका है

इस अंजुमन से  इक दिन  सबको जाना है
मौत की मंजिल ही बस सबका ठिकाना है
जीवन का रहस्य  मौत  इक  पहेली है
मौत ही जिन्दगी की सच्ची सहेली है

जिए  जो औरों को  भी सही जीना सिखा दे
मौत को जो इंसानियत का कफ़न पहना दे
मौत  की  मजाल   क्या  जो  उसे  मिटा  दे
उसी की मौत जिन्दगी को शहादत बना दे
  

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